जग बीती: फिजिक्स, गणित नहीं अर्थशास्त्र
बजट 2023-24: मनरेगा बजट में लगातार तीसरे वर्ष 34 फीसदी कटौती, 25 हजार करोड़ का भुगतान बाकी
मनरेगा के तहत वित्त वर्ष 2022-23 में जनवरी तक करीब 16000 करोड़ रुपए का भुगतान नहीं किया गया है जो कि वित्त वर्ष के ...
आम बजट 2022-23 : इस बार मनरेगा बजट में हुई 25 फीसदी की कटौती, बढ़ सकता है गांवों का संकट
मनरेगा में काम की मांग के बावजूद लगातार दूसरे वर्ष बजट घटा दिया गया है। इसके अलावा श्रम दिवस भी कम कर दिए गए ...
अंतरिम बजट 2024: लखपति दीदी बनने में कैसे सहयोग करती है केंद्र सरकार?
अपने बजट भाषण में केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने देश में तीन करोड़ लखपति दीदी के लक्ष्य की घोषणा की है
जग बीती: गांव जाएं या शहर
असम के युवाओं ने झीलों को जलकुंभी के प्रकोप से बचाने के लिए बनाई बायोडिग्रेडेबल मैट
पर्पल मूरहेन पक्षी के नाम पर इस चटाई का नाम मूरहेन योगा मैट रखा है, जिसे जल्द ही अंतराष्ट्रीय बाजार में पेश किया जाएगा।
यहां जानिए आखिर क्यों इस बार खेती-किसानी बड़ी उम्मीदों से ताक रही बजट की ओर
कोरोनाकाल में व्यापक आर्थिक झटके को कम करने में कृषि क्षेत्र ने बड़ी भूमिका अदा की है, लेकिन खेती-किसानी को बजट 2021-22 ने निराश ...
भारत में शिखर पर पहुंचा नारियल के रेशों और उससे बने उत्पाद का निर्यात
भारत द्वारा पिछले वर्ष की तुलना में 2019-20 में 24,950 मीट्रिक टन ज्यादा नारियल के रेशों और उससे बने उत्पाद का निर्यात किया था ...
डीबीटी: स्वीकार्यता बढ़ी, लेकिन लाभ कितना बढ़ा?
1 जनवरी 2013 को भारत पहली बार सात केंद्र प्रायोजिक योजनाओं को डीबीटी के अधीन ले आया
अर्थशास्त्रियों ने कहा, वृद्धावस्था-विधवा पेंशन और मातृत्व लाभ की धनराशि बढ़ाना जरूरी
भारत सहित विश्वभर के 51 प्रमुख अर्थशास्त्रियों ने आगामी बजट में सामाजिक सुरक्षा पेंशन और मातृत्व लाभ की धनराशि बढ़ाने के लिए वित्त मंत्री ...
आवरण कथा: आदिवासियों ने वन भूमि को विकसित कर दूर किया संकट
अकोला जिले के वाडला गांव में विकसित वन भूमि से चारा मिलने से लोगों का पलायन काफी हद तक रुक गया है
आवरण कथा: पशु चारे की जद्दोजहद, भाग-दो
पहले से ही चल रही भूसे की समस्या को बेमौसम बारिश, अत्यधिक गर्मी और गेहूं के कम उत्पादन ने बढ़ा दिया है
दुनिया में करीब 2.4 अरब महिलाओं के पास पुरुषों जैसे आर्थिक अधिकार नहीं: विश्व बैंक
कोविड-19 महामारी के बावजूद 23 देशों ने अपने कानूनों में सुधार करते हुए 2021 में महिलाओं के आर्थिक समावेश को आगे बढ़ाने के लिए ...
छत्तीसगढ़ के गांवों से क्यों मजदूरी करने शहरों में जाते हैं लोग
छत्तीसगढ़ सरकार के आंकड़ों के मुताबिक, कोरोना काल के समय में करीब सात लाख प्रवासी श्रमिकों ने घर वापसी की है
कोविड-19 लॉकडाउन भले खत्म हो जाये, लेकिन गरीब भूखे ही रहेंगे
11 राज्यों के गरीब व कमजोर तबके से जुड़े 4000 लोगों पर सर्वे किया गया, दो तिहाई ने कहा कि उन्हें कम खाना मिल रहा ...
डीबीटी: दुनिया भर में अपनाई जा रही है यह योजना
मार्च के अंत तक 84 देशों ने कोविड-19 के मद्देनजर सामाजिक सुरक्षा योजनाओं और नौकरियों के कार्यक्रम लागू किए
डीबीटी: 23 प्रतिशत लोगों के पास नहीं हैं बैंक खाते तो कैसे मिलेगा पैसा
डीबीटी का फायदा तब ही मिल सकता है, जब बैंक खाते होंगे और बैंक भी आधार नंबर से जुड़े होंगे तो फिर कितने को ...
क्या उत्तराखंड में लागू होगा सकल पर्यावरण उत्पाद, क्या होंगे फायदे
उत्तराखंड सकल पर्यावरण उत्पाद की गणना करने वाला पहला राज्य बन रहा है, इसकी मांग लंबे समय से की जा रही थी
देश के 67 फीसदी हथकरघा कामगारों की आमदनी 5,000 रुपए महीने से कम: सरकार
राज्यसभा में पूछे एक सवाल के जवाब में कपड़ा मंत्री ने बताया कि 1 फीसदी हथकरघा कामगारों की आमदनी 20 हजार महीना से अधिक ...
सभी महिलाओं के जनधन खातों में नहीं पहुंची कोविड-19 राहत : सर्वेक्षण
13 राज्यों में कम से कम 12,500 खाताधारकों का सर्वेक्षण किया गया, 16 प्रतिशत ने कहा खाता निष्क्रिय था
आवरण कथा: जहां चाह, वहां राह
राजस्थान के कई गांव चारागाह का विकास और प्रबंधन करके चारे के संकट से उबर चुके हैं
भारत में औसत मजदूर की साल भर की कमाई से ज्यादा चार घंटे में कमा लेता है एक सीईओ: ऑक्सफैम
2022 में वैश्विक स्तर पर जहां एक तरफ कर्मचारियों की तनख्वाह में 3.19 फीसदी की कटौती की गई वहीं दूसरी तरफ टॉप सीईओ के ...
डाउन टू अर्थ खास: क्यों की जा रही है गधों की हत्या, कितने जरूरी हैं हमारे लिए गधे
बोझा ढोने वाले जानवर के रूप में गधों का प्रयोग अब बहुत कम होता है। मांस और खाल के अवैध व्यापार के कारण भी ...
क्या रात्रि में किए प्रकाश की मदद से आय में व्याप्त असमानता का लगाया जा सकता है पता
हाल ही में किए शोध से पता चला है कि जो स्थान आर्थिक रूप से अधिक समृद्ध होते हैं, उन स्थानों पर पिछड़े इलाकों ...
आज के दौर में गांधी की प्रासंगिकता सबसे अधिक
जब नैतिक सिद्धांत राजनीति से लगभग गायब हो गए हैं, तो गांधीवादी मूल्य एक प्रभावी विकल्प के रूप में दिखाई देते हैं