डीबीटी: 23 प्रतिशत लोगों के पास नहीं हैं बैंक खाते तो कैसे मिलेगा पैसा
डीबीटी का फायदा तब ही मिल सकता है, जब बैंक खाते होंगे और बैंक भी आधार नंबर से जुड़े होंगे तो फिर कितने को ...
लॉकडाउन: 30 प्रतिशत प्रवासी मजदूरों ने घर वापसी के लिए लिया कर्ज: स्टडी
लॉकडाउन के बाद घर लौट रहे प्रवासियों पर किए गए अध्ययन में पाया कि 52 फीसदी लोगों के पास 1 एकड़ से कम जमीन ...
झारखंड में प्रवासियों की वापसी, जरा सी चूक कहीं पड़ न जाए भारी
झारखंड में अब तक 115 लोग कोविड-19 पॉजिटिव पाए गए हैं। इसमें 90 प्रतिशत मामले ए सिंप्टोमेटिक हैं
मध्यप्रदेश के सबसे बड़े गेहूं उत्पादक जिले होशंगाबाद में परिवहन व्यवस्था फेल
खरीदी केंद्र के प्रबंधकों ने प्रशासन और सहकारिता विभाग को पत्र लिखकर अपनी समस्याएं बताते हुए 28 अप्रैल से खरीदी का काम रोक दिया ...
सचिवालय से 2.5 किलोमीटर दूर भी नहीं पहुंचा सरकारी राशन!
झारखंड सरकार दावा कर रही है कि बिना राशन कार्ड वालों को 10 किलो चावल दिए हैं, लेकिन रांची सचिवालय से 2.5 किमी दूर पर ...
लाॅकडाउन से कैसे जूझ रहा है सुंदरवन?
सुंदरवन में लगभग 100 द्वीप हैं जिनमें से 54 द्वीप पर लोग रहते हैं। यहां की आबादी करीब 45 लाख है
लॉकडाउन नहीं खुला तो प्रवासी मजदूर ने कर ली आत्महत्या
दिहाड़ी मजदूरी करने वाले 30 वर्षीय युवक ने लॉकडाउन के कारण अपने चार बच्चों के लिए राशन का इंतजाम नहीं कर पाया
नेपाल में परिवार तक कमाई के पैसे और राशन भिजवा सकेंगे भारतीय कैंपों में ठहरे 1100 मजदूर
उत्तराखंड के पिथौरागढ़ जिले के धारचुला में ठहरे 1100 नेपाली मजदूरों की ओर से भूख हड़ताल की चेतावनी दी जा रही है
लॉकडाउन: लखनऊ की चिकनकारी का काम ठप, कारीगरों के सामने रोजी-रोटी का संकट
लखनऊ की प्रसिद्ध चिकनकारी से जुड़े कारीगरों के सामने रोजी-रोटी का संकट खड़ा हो गया है। लॉकडाउन की वजह से उनका काम ठप पड़ा ...
छत्तीसगढ़ के गांवों से क्यों मजदूरी करने शहरों में जाते हैं लोग
छत्तीसगढ़ सरकार के आंकड़ों के मुताबिक, कोरोना काल के समय में करीब सात लाख प्रवासी श्रमिकों ने घर वापसी की है
देश के 67 फीसदी हथकरघा कामगारों की आमदनी 5,000 रुपए महीने से कम: सरकार
राज्यसभा में पूछे एक सवाल के जवाब में कपड़ा मंत्री ने बताया कि 1 फीसदी हथकरघा कामगारों की आमदनी 20 हजार महीना से अधिक ...
दशक पर एक नजर: कृषि संकट के लिए किया जाएगा याद
नई सदी के दूसरे दशक के दौरान हुए महत्वपूर्ण घटनाओं की एक श्रृखंला: पहली कड़ी में पढ़ें, कृषि संकट के लिए क्यों याद किया ...
युवा होती दुनिया में क्यों बढ़ रहा है गुस्सा?
आज के समय में युवा असंतुष्ट हैं और गुस्से में है। इंटरनेट के इस जमाने में उनके गुस्सों को भुनाया जा सकता है, इसलिए ...
क्या उत्तराखंड में लागू होगा सकल पर्यावरण उत्पाद, क्या होंगे फायदे
उत्तराखंड सकल पर्यावरण उत्पाद की गणना करने वाला पहला राज्य बन रहा है, इसकी मांग लंबे समय से की जा रही थी
सभी महिलाओं के जनधन खातों में नहीं पहुंची कोविड-19 राहत : सर्वेक्षण
13 राज्यों में कम से कम 12,500 खाताधारकों का सर्वेक्षण किया गया, 16 प्रतिशत ने कहा खाता निष्क्रिय था
विश्व दुग्ध दिवस: लॉकडाउन ने कम की ऊंटनी के दूध की खपत
दुनियाभर में एक जून विश्व दुग्ध दिवस के रूप में मनाया जाता है। यह पहली बार है कि जब ऊंटनी का दूध (कैमल मिल्क) ...
पथ का साथी: लौटते प्रवासियों की दिक्कतें कम करने में जुटे ग्रामीण
डाउन टू अर्थ हिंदी के रिपोर्टर विवेक मिश्रा 16 मई 2020 से प्रवासी मजदूरों के साथ ही पैदल चल रहे हैं। पढ़ें, उनके साथ ...
प्रवासी मजदूरों के लिए मेधा पाटकर ने शुरू की 48 घंटे की भूख हड़ताल
लॉकडाउन की वजह से पैदल लौट रहे प्रवासी मजदूरों को सुविधाएं उपलब्ध कराने की मांग को लेकर मेधा पाटकर 48 घंटे के सांकेतिक अनशन ...
पीलीभीत की प्रसिद्ध बांसुरी की धुन पर कोरोना का लॉकडाउन
लॉकडाउन की वजह से उत्तर प्रदेश के पीलीभीत जिले की प्रसिद्ध बांसुरी कारोबार से जुड़े लोग भी रोजी-रोटी के संकट से जूझ रहे हैं
पत्नी की पायल बेच कर किया बच्चों के खाने का इंतजाम
सतना जिले के गांव केओटरा में निषाद समुदाय के लोग नाव चलाकर आजाविका कमाते थे, लेकिन लॉकडाउन की वजह से सब थम गया है
गांवों में नकदी तक पहुंचा रहा है राजस्थान का यह स्वयंसेवी संगठन
स्वयंसेवी संगठन राजस्थान के विभिन्न हिस्सों में अपने-अपने स्तर पर लोगों की सहायता कर रहे हैं
कोरोना से लड़ाई में आदिवासियों का साथ दे रहा है यह स्वयंसेवी संगठन
कोरापुट देश के उन जिलों में से है जहां 50 प्रतिशत से ज्यादा आबादी आदिवासियों की है। यहां प्रगति नामक यह संगठन लोगों के ...
क्या लॉकडाउन खुलने के बाद लौट आएंगे पहाड़ गए लोग?
लॉकडाउन की घोषणा होते ही प्रवासी वापस अपने गांव लौट गए, लेकिन क्या ये वहीं रह पाएंगे, क्या वहां की सरकारें इन्हें रोकने के ...
आधे से ज्यादा आदिवासियों ने घर छोड़ा
आदिवासी खेती से मुंह मोड़ रहे हैं। हर दूसरा आदिवासी परिवार असंगठित क्षेत्र में मजदूरी कर गुजर-बसर को मजबूर है
आज के दौर में गांधी की प्रासंगिकता सबसे अधिक
जब नैतिक सिद्धांत राजनीति से लगभग गायब हो गए हैं, तो गांधीवादी मूल्य एक प्रभावी विकल्प के रूप में दिखाई देते हैं